विक्रम संवत 1640 को विजयदशमी के दिन लडा गया दिवेर का युद्ध भारतीय इतिहास में युगान्तकारी परिवर्तन लाने वाला युद्ध है। महाराणा प्रताप के नेतृत्व में दिवेर विजय के उपरांत अगले दो-तीन वर्षों में मुगलों के द्वारा स्थापित समस्त थाने समाप्त हो गए तथा लगभग समस्त मेवाड तथा वागड, गोडवाड से लेकर मालवा तक महाराणा प्रताप का शासन स्थापित हो गया। अगले 2022 वर्षों तक मेवाड़ में शांति बनी रही तथा मुगलों ने इस ओर आंख उठाने की हिम्मत नहीं की।
दिवेर युद्ध इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि इस युद्ध में प्रथम बार महाराणा प्रताप ने अपनी रक्षात्मक युद्ध नीति में परिवर्तन कर आगे बढ़कर आक्रमण की नीति अपनाई, युद्ध नीति कौशल तथा कूटनीति की दृष्टि से यह युद्ध अनेकों युद्ध से अधिक प्रभावी सिद्ध होता है। कुछ ही घंटे में प्रताप की सेना ने इस युद्ध में ऐसा तांडव रचा कि 36000 बर्बर मुगल सैनिकों को बुरी तरह पराजित किया। महाराणा प्रताप के योग्य सुपुत्र युवराज अमर सिंह द्वारा सुल्तान खान पर भाले से किया गया वार सुल्तान खान के शरीर को और घोड़े को चीरता हुआ जमीन में धंस गया।
उल्लेखनीय है कि सुल्तान खान महा शक्तिशाली था तथा रिश्ते में अकबर का चाचा लगता था, इसलिए उसका सभी ओर आतंक था। दिवेर विजय के उपरांत मेवाड जीतने की अकबर की सारी योजनाएं खटाई में पड़ गई। मेवाड का हिन्दुवा सूर्य पुनः अपने तेज से चमकने लगा तथा मुगलिया अभियान का झंडा मेवाडी गज के पैरों तले रौंदा गया। प्रताप गौरव केंद्र “राष्ट्रीय तीर्थ” दिवेर युद्ध की इस महत्वपूर्ण विजय को विश्व के समक्ष प्रस्थापित करने तथा इस विजय के महत्व का महिमागान दसों दिशाओं में गुंजायमान करने हेतु दिवेर विजय महोत्सव का आयोजन करने जा रहा है, जिसके अंतर्गत संपूर्ण सितंबर माह में विविध कार्यक्रमों, प्रतियोगिताओं तथा व्याख्यानमालाओं के माध्यम से कोटि कोटि जन तक दिवेर विजय महोत्सव का संदेश प्रसारित किया जाएगा। कार्यक्रम का समापन 7 अक्टूबर, 2024 को प्रताप गौरव केन्द्र पर एक सार्वजानिक कार्यक्रम द्वारा किया जाएगा।
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